नर्गिस उर्फ़ डेफोडिल के फूल! तुम वही हो न जिसके पुरखों ने ढाई सौ साल पहले, सात समंदर पार विलियम वर्ड्सवर्थ का मन मोह लिया था। शुक्र है कि विलियम वर्ड्सवर्थ कोई बिल्डर नहीं थे, नहीं तो उन वादियों में उन्हें झूमते हुए डेफोडिल्स न नज़र आते। शुक्र है रचियता ने वर्ड्सवर्थ को बनाते वक़्त उनके खमीर में कुदरत से इश्क़ का कुछ हिस्सा मिला दिया था, वरना न तो वह कभी खुद को आज़ाद बादल मानते और न हवाओं की लय पर तुम्हे झूमता हुआ महसूस कर पाते!
प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं में नर्गिस के फूल का ज़िक्र मिलता है। ये उस समय का किस्सा है जब चेहरा देखने के लिए आइना नहीं हुआ करता था। ज़ियुस आसमान का देवता था। उसे तमाम इंसानों और हुक्मरानों पर सबसे ऊंचा दर्जा दिया गया था। इन सबकी हिफाज़त की ज़िम्मेदारी भी ज़ियुस की ही थी। ज़ियुस को पेड़ और पानी बड़े ही खूबसूरत नज़र आते थे। इतने कि उन्हें इनसे मोहब्बत थी। मगर उनकी पत्नी हेरा को ज़ियुस की यह आदत बहुत नापसंद थी। यूनान के पुराने किस्सों में ये खुलासा मिलता है कि जब ज़ियुस एक खूबसूरत जंगल से गुजरता तो इको नाम की एक परी उसे घेर लेती और अपनी बातों में उलझा लिया करती। ज़ियुस को भी परियों के झुरमुट में बैठने में बड़ा मज़ा आता था।
एक दिन नारसेसस नदी
में झुका कुछ तलाश कर रहा था, तब उसने पानी में अपना अक्स देखा। वह खुद अपने हुस्न
पर फ़िदा हो गया। इतना कि अपनी ही मोहब्बत में गिरफ्तार हो गया। अब खुद को निहारना ही
उसे याद रहा। शहज़ादा पानी में अपना रूप निहारता और उसे चूमने के लिए और क़रीब जाने की
कोशिश करता। खुद को चूम लेने की चाहत उसे पानी के करीब ले जाती तो वह पानी में गिर
जाता। बेचैन शहज़ादा इसी कोशिश में लगा हुआ था। आस पास के पेड़, फूल, जंगल, खुशबु, हवा
और पहाड़ इस मंज़र के गवाह थे। उन सबने देखा कि किस तरह खुद की चाहत में मजबूर शहज़ादा
पानी में अपनी ही तलाश करता। खुद को चूमने की खातिर वो उसी जगह बैठा रह गया। इस चाहत
में वह दुनिया से बेगाना हो गया और खुद को पाने के इन्तिज़ार में उसने दम तोड़ दिया।
इसकी खबर इको को भी मिली। बेक़रार इको जब वहां पहुंची तो उसने पाया उस जगह पर नर्गिस
का फूल खिला हुआ था।
वही नर्गिस का फूल जिसकी
सुंदरता का बखान विलियम वर्ड्सवर्थ को 'द डेफोडिल' रचने पर मजबूर कर गया। एक ही नज़र
में इन फूलों और उस घाटी में उन्होंने क्या कुछ नहीं देख डाला। खुद को एक टहलते बादल
का टुकड़ा मान कभी वह इन फूलों को दस हज़ार महसूस करते और उसी पल इनका हवा में हिलकोरे
खाता झुण्ड उन्हें किसी लहर की तरह नज़र आता। इसी बीच इन नन्हे नर्गिस को वह आसमान में
टांके गए तारे जैसा पाते और यही फूल ख़ुशी के लम्हों में उनके साथ नाचते उनके ख्यालों
का हिस्सा बने।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंBahut acha likha hai tumne.. Isme kai chupi baten hein samajhne ki zarurat hai.. Ab bhi log sudhr jayen
जवाब देंहटाएंकुछ अनकही से बातें, बहुत कुछ खुलासा sa करती हुई
हटाएंकाश!
हटाएंBahut umda Sameena
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार लेख। कुदरत को बचाए रखना अब जरूरी हो नहीं, मजबूरी है।
जवाब देंहटाएंहां, बशर्ते महसूस किया जाए।
हटाएंLovely story
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंबहुत ही जबरदस्त दिल की गहराइयों से निकला इजहार. सुन्दर भावाभिव्यक्ति. भाषा-शैली ऐसी कि लगता है कि आपने अपनी और अपने मन की बात रखी है.
जवाब देंहटाएंVery well narrated. Thanks.
जवाब देंहटाएंThanks 🙏
हटाएंशानदार लेखन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत ख़ूबसूरत...आपने तो सुबह सुबह इश्क़ के गवाह रहे इस जंगल की सैर करवा दी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत शुक्रिया।💕
हटाएंMa Sha Allah bahut hi zabardast
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दोस्त।
हटाएंBeutiful very nice sameena
जवाब देंहटाएंThank
हटाएंबहुत अच्छा लिखती हो, मखमल की तरह लगते हैं शब्द। खुद भी उसमें खो जाते हैं। वाह।
जवाब देंहटाएंनवाजिश🌸
हटाएंWaqai bahot hi khoobsurat alfaz se sajoya h tmne zabrdast..khush raho abaad raho bhn ......Asma Jafri
जवाब देंहटाएंदोस्त 💖
हटाएंZABARDASTTTTTTT
जवाब देंहटाएंZABARDASTTTTTT
जवाब देंहटाएंSHEIBA DAIDAA
🙏
हटाएंWlll done.proud of you.suraiya
जवाब देंहटाएंThanx 💕
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