बुधवार, 20 जुलाई 2022

शुक्र है कि विलियम वर्ड्सवर्थ कोई बिल्डर नहीं थे

नर्गिस उर्फ़ डेफोडिल के फूल! तुम वही हो न जिसके पुरखों ने ढाई सौ साल पहले, सात समंदर पार विलियम वर्ड्सवर्थ का मन मोह लिया था। शुक्र है कि विलियम वर्ड्सवर्थ कोई बिल्डर नहीं थे, नहीं तो उन वादियों में उन्हें झूमते हुए डेफोडिल्स न नज़र आते। शुक्र है रचियता ने वर्ड्सवर्थ को बनाते वक़्त उनके खमीर में कुदरत से इश्क़ का कुछ हिस्सा मिला दिया था, वरना न तो वह कभी खुद को आज़ाद बादल मानते और न हवाओं की लय पर तुम्हे झूमता हुआ महसूस कर पाते!


 प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं में नर्गिस के फूल का ज़िक्र मिलता है। ये उस समय का किस्सा है जब चेहरा देखने के लिए आइना नहीं हुआ करता था। ज़ियुस आसमान का देवता था। उसे तमाम इंसानों और हुक्मरानों पर सबसे ऊंचा दर्जा दिया गया था। इन सबकी हिफाज़त की ज़िम्मेदारी भी ज़ियुस की ही थी। ज़ियुस को पेड़ और पानी बड़े ही खूबसूरत नज़र आते थे। इतने कि उन्हें इनसे मोहब्बत थी। मगर उनकी पत्नी हेरा को ज़ियुस की यह आदत बहुत नापसंद थी। यूनान के पुराने किस्सों में ये खुलासा मिलता है कि जब ज़ियुस एक खूबसूरत जंगल से गुजरता तो इको नाम की एक परी उसे घेर लेती और अपनी बातों में उलझा लिया करती। ज़ियुस को भी परियों के झुरमुट में बैठने में बड़ा मज़ा आता था।

 जल्दी ही हेरा को इस मामले की जानकारी हो गई। उसने इको को बद्दुआ दी, जिसके नतीजे में इको की प्यारी सी आवाज़ गूंज में बदल गई। फिर इको जंगल जंगल भटकती रहती और अपने दिल का सुकून तलाशा करती। इसी तलाश में उसे एक दिन जंगल में एक शहज़ादा नज़र आया। शहज़ादा नारसेसस (Narcissus) बेहद खूबसूरत था। इको उसके हुस्न पर मर मिटी। मगर शहज़ादा उससे लापरवाह रहा। अकसर वह इको को दुत्कार भी दिया करता था। दुखी इको इस बेरुखी को बर्दाश्त न कर सकी और अपने दर्द पर काबू पाने में नाकामयाब होकर उसने शहज़ादे को बद्दुआ दे डाली- ‘ईश्वर तुम्हे अपनी ही मोहब्बत में गिरफ्तार कर दे और तुम्हे खुद को पाने का कोई जरिया न मिले।‘

एक दिन नारसेसस नदी में झुका कुछ तलाश कर रहा था, तब उसने पानी में अपना अक्स देखा। वह खुद अपने हुस्न पर फ़िदा हो गया। इतना कि अपनी ही मोहब्बत में गिरफ्तार हो गया। अब खुद को निहारना ही उसे याद रहा। शहज़ादा पानी में अपना रूप निहारता और उसे चूमने के लिए और क़रीब जाने की कोशिश करता। खुद को चूम लेने की चाहत उसे पानी के करीब ले जाती तो वह पानी में गिर जाता। बेचैन शहज़ादा इसी कोशिश में लगा हुआ था। आस पास के पेड़, फूल, जंगल, खुशबु, हवा और पहाड़ इस मंज़र के गवाह थे। उन सबने देखा कि किस तरह खुद की चाहत में मजबूर शहज़ादा पानी में अपनी ही तलाश करता। खुद को चूमने की खातिर वो उसी जगह बैठा रह गया। इस चाहत में वह दुनिया से बेगाना हो गया और खुद को पाने के इन्तिज़ार में उसने दम तोड़ दिया। इसकी खबर इको को भी मिली। बेक़रार इको जब वहां पहुंची तो उसने पाया उस जगह पर नर्गिस का फूल खिला हुआ था।

वही नर्गिस का फूल जिसकी सुंदरता का बखान विलियम वर्ड्सवर्थ को 'द डेफोडिल' रचने पर मजबूर कर गया। एक ही नज़र में इन फूलों और उस घाटी में उन्होंने क्या कुछ नहीं देख डाला। खुद को एक टहलते बादल का टुकड़ा मान कभी वह इन फूलों को दस हज़ार महसूस करते और उसी पल इनका हवा में हिलकोरे खाता झुण्ड उन्हें किसी लहर की तरह नज़र आता। इसी बीच इन नन्हे नर्गिस को वह आसमान में टांके गए तारे जैसा पाते और यही फूल ख़ुशी के लम्हों में उनके साथ नाचते उनके ख्यालों का हिस्सा बने।

 शुक्र है कि विलियम वर्डस्वर्थ के पास स्मार्ट फोन नहीं था, नहीं तो दुनिया उनकी इस रचना से महरूम रह जाती। और शुक्र है कि विलियम वर्डस्वर्थ कोई बिल्डर नहीं थे। वरना उस घाटी में उन्हें नज़र आतीं गगनचुम्बी इमारतें, जिनमें लोगों को बसाने के लिए इन डेफोडिल्स की कब्र बनाने के सिवा कोई चारा ही नहीं था।

अलल-टप

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