बुधवार, 17 अप्रैल 2024

अलल-टप

सीमा का कविता संग्रह "कितनी कम जगहें हैं" को आये काफी दिन गुज़र गए और कुछ भी सलीके से लिखने का मौक़ा नहीं मिला। फीलिंग जेलस से लेकर फीलिंग प्राउड या फीलिंग नॉस्टेल्जिया जैसा कुछ भी लिखने का इरादा नहीं। ... और लिखना भी है तो एक ही हल बचता है कि अलल-टप लिखा जाए। 

चलन के मुताबिक़ मेरी भी ख्वाहिश थी कि खिड़की, अलगनी या गमले से एक क़दम आगे बढ़ कर इस किताब का ज़रा आला दर्जे का फोटो शूट होना चाहिए। मेरी ख़्वाहिश ऐसी बेकाबू हुई कि चांद तलक चली गई। श्री हरिकोटा फ़ोन लगाया तो पता चला कि चंद्रयान-3 जा चुका है और 4 के जाने में अभी काफी वक़्त है। गोया चांद पर फोटोशूट मुमकिन नहीं। 

मंगल की सवारी की जानकारी लेना मुनासिब नहीं लगा क्योंकि साहित्य का चांद से रिश्ता समझ आता है, मंगल शनि के लिए तो पाठक हैं ही!

नासा कॉल करने की हिम्मत नहीं पड़ी। वह ज़रा 'छोटा मुंह बड़ी बात' जैसा लगा मगर पता नहीं कैसे नासा वालों को इत्तिला मिल गई कि हम चांद पर कुछ भेजना चाहते हैं। इसे कहते हैं टेक्नोलॉजी। वल्लाह ग़ालिब याद आ गए-

"देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहा
मैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है"

और नासा का कॉल चीख़ चीख़ कर कह रहा था-

"देखना तकनीक की लज़्ज़त कि जो हमने सोचा
नासा ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है" 

मेरी इतराहट लाज़िम थी। 'साइंस' की पहली सीढ़ी 'परिकल्पना' ही है। ग़ालिब का ख्याल और साइंसदानों की मशक़्क़त आज क्या गुल खिला चुकी थी। सात समंदर पार बैठे हमारे दिमाग़ को न सिर्फ़ नासा ने इस तकनीक की मदद से रीड कर डाला बल्कि फौरन से पेशतर हमें कॉल भी कर ली।

आइडिया उन्हें भी काफी यूनीक लगा, कहने लगे- ''आप किताब का साइज़ और वज़न भेज दीजिए हम कहीं न कहीं एडजस्ट करते हैं। किताब फ़ौरन भेज दी गई और वहां से इत्तिला भी आ गई कि आपको जल्दी ही जानकारी देंगे। 

संकोच के साथ हमने कीमत भी पूछ ली तो जवाब मिला कि साहित्य की क़ीमत कैसे लगा सकते हैं। ये तो हमारी धरती की साझी विरासत है। अब यह किसी राष्ट्र का नहीं बल्कि इस धरती का मामला है। मेरा-तेरा का तो सवाल ही नहीं उठता। इस दलील के बाद किसी सवाल की कोई गुंजाईश ही नहीं बची थी और हम बड़ी ही बेसब्री से इस इन्तिज़ार में थे कि जैसे ही चांद से 'कितनी कम जगहें हैं' की तस्वीर आएगी, हम भी रच-रच कर एक पोस्ट लिख डालेंगे। 

मगर मेरी ख़्वाहिश पर ग्रहण लग गया और बिन बुलाए मंगल और  शनि भारी पड़ गए। हुआ कुछ यूं कि किताब का वज़न लिया जाने लगा तो पता चला कि यह तो यान से भी ज़्यादा है। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने ये सुना तो उनके कानों से धुंए निकल गए। आनन-फ़ानन इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई। बड़े-बड़े दिग्गज भी यह पता नहीं लगा सके की माजरा क्या है? ... और हम यह कर कर उन्हें छोटा महसूस नहीं कराना चाहते थे कि जनाब ये अलफ़ाज़ का नहीं विचारों का वज़न है जिसका धर्मकांटा अभी ईजाद नहीं हुआ है।

अलल-टप

सीमा का कविता संग्रह "कितनी कम जगहें हैं" को आये काफी दिन गुज़र गए और कुछ भी सलीके से लिखने का मौक़ा नहीं मिला। फीलिंग जेलस से लेकर ...