रविवार, 12 जुलाई 2020

हिम्मत की किताब में तजुर्बे का एक चैप्टर


आईआईसीयू की वो रात भी बहुत सुकून वाली थी जब जिस्म कई तरह के वायर से लैस था। सामने स्क्रीन पर चलता हुआ पारा क्या बता रहा था नहीं पता मगर उसका फुदकना याद है। बायां हाथ ब्लड प्रेशर के लिए बंधा था और दाहिने में ड्रिप के अलावा एक लिवर था जिसे कुछ वक़्त के बाद प्रेस करना होता था। नब्ज़ और धड़कन के सहारे मलकुल्मौत उर्फ़ यमराज के आने या ना आने का रुझान देखा जा रहा था। ...और इन सबके बावजूद भी गज़ब का सुकून था। इतना तय था कि या तो मरना है या जीना और जो होगा देखा जायेगा।

मगर आज का दिन जितना बेचैनी भरा था उसका बयान मुमकिन नहीं। चार महीने से लॉकडाउन ने कई आदतों को बदल दिया था। जब मार्च में पहली बार लॉकडाउन हुआ तो आस पास का पूरा एरिया सुनसान था, जो जहाँ था वहीँ फंसा रह गया था और महीनों फंसा रहा। अब जबकि अनलॉक के बाद फिर से दो दिन के लॉक डाउन की खबर आई तो काहिली और बेफ़िक्री अपने उरूज पर दिखी। आटे के कनस्तर में चोकर दिखाई दिया। बी पॉजिटिव रहने की कोशिश ने लापरवाही में इज़ाफ़ा किया था। पेट भरने का चावल और दालें देख तसल्ली हुई मगर सब्ज़ी वाले को फोन किया तो जवाब मिला -"सब्ज़ी मंडी में कोरोना का केस मिला है। अभी मंडी बंद है। इसलिए नहीं आ सकते।' रही सही कसर बिजली ने निकाल दी। आधे दिन तक तो आंख मिचौली का खेल चला मगर आधे दिन के बाद जो गायब हुई तो बिलकुल अच्छे दिन साबित हुई।

सूरज डूबते डूबते दिल का डूबना भी महसूस होने लगा था। सुकून के लिए फेसबुक पहले ही बंद कर चुके थे व्हाट्सएप्प पर आने वाली सच्ची और झूठी ख़बरें दहशत में ऐसा इज़ाफ़ा कर रही थीं अपने पैरों पर खड़ा होना मुश्किल महसूस हुआ। बिजली गए 5-6 घंटे हो चुके थे। पसीना इतना बहा चुके थे कि उसी को जमा करके छिड़काव करते तो कुछ बेहतर माहौल हो जाता। बारिश के बाद निकली धूप में उमस के नापने का कोई मीटर लगाते तो इसमें पापुलेशन घड़ी को पछाड़ने के पूरे तेवर मिलते।

सूरज डूबने के बाद ये एहसास मज़बूत होने लगा कि सुबह का सूरज देखना शायद नसीब न हो। आखिर वक़्त की रस्मों का सोचा तो वसीयत के लिए कोई रियासत थी नहीं और नसीहत भला किसे पसंद आती है। पिछले चार महीने में हिम्मत बटोरने की जितनी आदतें डालीं थीं वो सब साथ छोड़ गईं और डिप्रेशन का मीटर कोरोना पॉसिटिव केस की तरह बढ़ता महसूस हुआ। कोरोना के डिप्रेशन से मरना बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।

घबराहट थोड़ी और बढ़ी और सब कुछ घूमता हुआ सा महसूस हुआ। ऐसा लग रहा था जैसे उस चलती बस में सवार हैं जिसका ड्राइवर भाग गया है और इसके रुकने के साथ ही मेरी सांस और धड़कन भी थम जाएगी। अचानक फोन की घंटी बजी, दूसरी तरफ भावज थीं सोचा माफ़ी तलाफ़ी से पहले कैफियत बता दें। बात पूरी होने से पहले उसने कहा -'आपका बीपी बहुत पसीना बहने से लो हो गया है सबसे पहले नींबू की शिकंजी पियें। फ्रिज में एक नींबू मिल ही गया और शिकंजी के अलावा काफी सारा पानी पीने के बाद होश भी दुरुस्त हुए। 

चारों तरफ तैयार हुआ मौत का शिकंजा महज़ एक गिलास शिकंजी से धराशाई होने के साथ हिम्मत की किताब में तजुर्बे के एक और चैप्टर का इज़ाफ़ा कर गया था।


अलल-टप

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