गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

Roses are red, Violets are blue


इश्क में सोहनी - महिवाल या लैला - मजनू हो जाना अलग बात है मगर एक मरे हुए आशिक़ के लिए रिया ने जो इम्तिहान दे दिया उसने भी इतिहास रच दिया है। उसे सुशांत से सोहनी या लैला वाला इश्क़ था या नहीं, पता नहीं मगर देश की तीन बड़ी एजेंसियों का इस जांच में शामिल होना, रिया को विषकन्या का खिताब दिया जाना और सोशल मीडिया जैसे सशक्त प्लेटफार्म पर उसको ज़लील करने के लिए एक से एक वाहियात हैश टैग चलाना। पुलिस, प्रशासन, सियासत, न्यायालय समेत देश की पूरी आबादी को इस मुद्दे के गड्ढे में ढकेलने की जी तोड़ कोशिशों के साथ हैवानियत का कोई करम न छोड़ना। मीडिआ का उसे गिद्धों की तरह नोचना और महीनाभर जेल की कोठरी में गुज़ारना। इश्क़ की ऐसी दलील शायद न तो इतिहास में होगी और न ही भविष्य में जल्दी नज़र आने के आसार हैं। सुशांत ने किन परिस्थितियों में खुदकुशी की किसी ने नहीं जानना चाहा मगर सबने ये देखा कि उस केस की भरपूर फ़ज़ीहत हुई और एक हालात के मारे इंसान की मौत पर हर किसी ने अपनी रोटी सेंकी। 

इतनी लागत ताक़त और मेहनत झोंककर अगर ख़ुदकुशी से जुड़े मामलों पर रिसर्चवर्क किया गया होता, ख़ुदकुशी से जुड़े आंकड़ों और ख़ुदकुशी करने वाले के हालात का जायज़ा लिया गया होता तो शायद आज बहुत कुछ ऐसा निकलकर आता जो इन मामलों की रोकथाम में सहायक होता। मगर ऐसा कुछ भी हाथ नहीं आया। और एक बार फिर से रिया चक्रवर्ती की हिम्मतों को सलाम जिसने एक जानलेवा जांच के बावजूद अपनी उस हिम्मत को बचाए रखा जिसके टूटने पर सुशांत या उनके जैसे लोग ख़ुदकुशी का रास्ता चुनते हैं। इतना तो कंगना रनौत को भी मान ही लेना चाहिए।   

#RheaChakraborty 

अलल-टप

सीमा का कविता संग्रह "कितनी कम जगहें हैं" को आये काफी दिन गुज़र गए और कुछ भी सलीके से लिखने का मौक़ा नहीं मिला। फीलिंग जेलस से लेकर ...