शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

'दो आवाज़ें'- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ उम्मीद के शायर है, स्याह रात में सुबह की उम्मीद के शायर। फ़ैज़ की नज़्म 'दो आवाज़ें' एक ऐसे ही वक़्त की आवाज़ है। टूटी हुई उम्मीद से जब पहली आवाज़ मायूसी की गिरफ्त में आती है तो दूसरी आवाज़ के ज़रिये फ़ैज़ सिर्फ उम्मीद भरे जवाब तराशते हैं बल्कि एक नई सुबह की इबारत लिखते हैं। 

पहली आवाज़

अब सई का इम्काँ और नहीं पर्वाज़ का मज़मूँ हो भी चुका

तारों पे कमंदें फेंक चुके महताब पे शब-ख़ूँ हो भी चुका

अब और किसी फ़र्दा के लिए उन आँखों से क्या पैमाँ कीजे

किस ख़्वाब के झूटे अफ़्सूँ से तस्कीन--दिल--नादाँ कीजे

शीरीनी--लब ख़ुशबू--दहन अब शौक़ का उनवाँ कोई नहीं

शादाबी--दिल तफ़रीह--नज़र अब ज़ीस्त का दरमाँ कोई नहीं

जीने के फ़साने रहने दो अब इन में उलझ कर क्या लेंगे

इक मौत का धंदा बाक़ी है जब चाहेंगे निप्टा लेंगे

ये तेरा कफ़न वो मेरा कफ़न ये मेरी लहद वो तेरी है

 

दूसरी आवाज़

हस्ती की मता--बे-पायाँ जागीर तिरी है न मेरी है

इस बज़्म में अपनी मिशअल--दिल बिस्मिल है तो क्या रख़्शाँ है तो क्या

ये बज़्म चराग़ाँ रहती है इक ताक़ अगर वीराँ है तो क्या

अफ़्सुर्दा हैं गर अय्याम तिरे बदला नहीं मस्लक--शाम--सहर

ठहरे नहीं मौसम--गुल के क़दम क़ाएम है जमाल--शम्स--क़मर

आबाद है वादी--काकुल--लब शादाब--हसीं गुलगश्त--नज़र

मक़्सूम है लज़्ज़त--दर्द--जिगर मौजूद है नेमत--दीदा--तर

इस दीदा--तर का शुक्र करो इस ज़ौक़--नज़र का शुक्र करो

इस शाम ओ सहर का शुक्र करो इन शम्स ओ क़मर का शुक्र करो

 

पहली आवाज़

गर है यही मस्लक--शम्स--क़मर इन शम्स--क़मर का क्या होगा

रानाई--शब का क्या होगा अंदाज़--सहर का क्या होगा

जब ख़ून--जिगर बर्फ़ाब बना जब आँखें आहन-पोश हुईं

इस दीदा--तर का क्या होगा इस ज़ौक़--नज़र का क्या होगा

जब शेर के ख़ेमे राख हुए नग़्मों की तनाबें टूट गईं

ये साज़ कहाँ सर फोड़ेंगे इस क्लिक--गुहर का क्या होगा

जब कुंज--क़फ़स मस्कन ठहरा और जैब--गरेबाँ तौक़--रसन

आए कि न आए मौसम--गुल इस दर्द--जिगर का क्या होगा

 

दूसरी आवाज़

ये हाथ सलामत हैं जब तक इस ख़ूँ में हरारत है जब तक

इस दिल में सदाक़त है जब तक इस नुत्क़ में ताक़त है जब तक

इन तौक़--सलासिल को हम तुम सिखलाएँगे शोरिश--बरबत--नय

वो शोरिश जिस के आगे ज़ुबूँ हँगामा--तब्ल--क़ैसर--कै

आज़ाद हैं अपने फ़िक्र ओ अमल भरपूर ख़ज़ीना हिम्मत का

इक उमर है अपनी हर साअत इमरोज़ है अपना हर फ़र्दा

ये शाम--सहर ये शम्स--क़मर ये अख़्तर--कौकब अपने हैं

ये लौह--क़लम ये तब्ल--अलम ये माल--हशम सब अपने हैं

 


अनुवाद-पहली आवाज़

परवाज़ की तमाम कोशिशें पूरी हो चुकी हैअब लगता नहीं की किसी जद्दोजहद की ज़रूरत है

सितारों पर लंगर डाले जा चुके है और चाँद पर भी पहुंचा जा चुका है

कल का कोई बाक़ी वादा नज़र नहीं आ रहा है

किसी भी झूठे ख़्वाब से दिल को तसल्ली देने का कोई मक़सद सुझाई नहीं दे रहा है

शौक़ का हर मज़मून (विषयबदल चुके है अब न ही अल्फ़ाज़ में खुशबू बची है और न ही आवाज़ में मिठास बाक़ी है

दिल और नज़र की शोखी और शादाबी में जिंदिगी के इलाज नहीं रहे

जीने के फ़साने रहने दो अब इनमे उलझ कर क्या लेंगे

एक मौत का मामला बाक़ी है जब चाहेंगे निपटा लेंगे

ये तेरा कफ़न वो मेरा कफ़नवो तेरी क़ब्र ये मेरी है

 

अनुवाद-दूसरी आवाज़

हुनर के ख़ज़ाने की कोई हद नहीं न ही ये किसी की जागीर है

इस महफ़िल में अपना दिल मुरझाया है या खिला हुआ है ये बेमानी है

ये तो वह महफ़िल है जहाँ किसी एक झरोके के वीरान हो जाने के बावजूद सारा मंज़र झिलमिलाता है

तुम्हारे दिन रात अगर बोझिल है तो भी रात और दिन का सिलसिला जारी है

चाँद और सूरज अपनी जगह पर बरक़रार हैंमौसम का उन पर कोई असर नहीं है

ज़ुल्फ़ और लब खिले हुए है और हसीं फूल आबाद हैं

दिल के दर्द का एहसास और भीगी आँखों की नेमत अभी बाक़ी है

इन आंसू भरी आँखों का शुक्र करोइसे भांप लेने वाली नज़र का शुक्र करो

इस सुबह शाम का शुक्र करोइस चाँद सूरज का शुक्र करो

 

अनुवाद-पहली आवाज़

अगर चाँद और सूरज का यही दस्तूर है तो इस दस्तूर से क्या होगा?

झिलमिलाती रात का क्या मतलब और चमकदार सुबह से क्या होगा?

जब जिगर का सारा खून बर्फ की तरह जम जायगा और आँखें लोहा पहन लेंगी

तब इस भीगी आँखों और दूरअंदेशी का क्या होगा?

जब शेर (कविताख़ाक हो जायगे और नग़मों की तान टूट जाएगी

तब इन नायाब मोतियों का क्या होगा और ये साज़ कहाँ सर फोड़ेंगे

जब पिंजरे का कोना ही ठिकाना होगा और जेब और गिरेबान ही फांसी का फन्दा होगा

तब बहारों का मौसम आये या न आयेइस दुखते दिल का क्या फ़ायदा

 

अनुवाद-दूसरी आवाज़

जब तक ये हाथ सलामत है और जब तक इस खून में जोश है

जब तक इस दिल में सच्चाई है और जब तक बोलने की हिम्मत बाक़ी है

इन बेड़ियों और ज़ंजीरों को हम तुम हंगामे की एक नई भाषा सिखाएंगे

हंगामे की वह भाषा जिसके आगे ऐतिहासिक योद्धाओं के नक्कारों की आवाज़ कमज़ोर पड़ जायगी

हमारे पास हिम्मत का भरपूर ख़ज़ाना हैसोचने और उस पर अमल करने की सलाहियत है

जीवन का हर लम्हा एक सदी के सामान है और हर नया दिन एक नया सवेरा है

ये सुबह और शामये सूरज और चाँद और ये सितारे सब अपने है

ये कागज़ और क़लमये नक्कारेये विरासतें और मान सब अपने है

 

अलल-टप

सीमा का कविता संग्रह "कितनी कम जगहें हैं" को आये काफी दिन गुज़र गए और कुछ भी सलीके से लिखने का मौक़ा नहीं मिला। फीलिंग जेलस से लेकर ...