शादी के बाद हिन्दुस्तान से बाहर चली गई एक दोस्त कुछ बरस पहले अलीगढ़ में आबाद हो गई। करीब एक साल पहले उसका फ़ोन आया कि कॉलेज से उसे कुछ पेपर्स चाहिए। अगर हम उसकी कुछ मदद कर दें तो उसे लखनऊ की भाग दौड़ से राहत मिल जाएगी। इस सिलसिले में जब कॉलेज का नंबर तलाश किया तो मालूम हुआ कि वहां लैंडलाइन फ़ोन नहीं है। अफ़सोस और गुस्से से ज़्यादा शर्मिंदगी का एहसास हुआ। भला इतने पुराने और मशहूर कॉलेज में लैंडलाइन फ़ोन न होने की क्या मजबूरी हो सकती है?
किसी की मदद से ऑफिस के क्लर्क का नंबर मिला। काम की बात के बाद जब कॉलेज के बारे में जानना चाहा तो पता चला कि इतिहास रचने वाले कॉलेज का भूगोल भी चरमरा चुका है। इस अफ़सोस में तय किया कि वहां जाकर हालात का जायज़ा लेना चाहिए।
इसके बारे में ये ज़रूर जान लीजिए की पुराने लखनऊ के मंसूर नगर इलाके में बने इस का कॉलेज का नाम म्युनिसिपल गर्ल्स इंटर कॉलेज है। ये इमारत और इलाक़ा 250 बरस पहले कश्मीर से आने वाले कश्मीरी पंडित और मुसलमानों की उस दास्तान के खुशगवार पहलू को पेश करता है जिन्हे विवेक अग्निहोत्री जैसे लोग कभी देख ही नहीं सकते। और यही वह जगह है जहां सख्त परदे में पढ़ने वाली लड़कियों ने दुनिया में अपना नाम रोशन किया।
यहां से पढ़कर निकले बच्चे हमेशा ये साबित करते रहे हैं कि चेहरे पर पड़ा पर्दा अक़्ल पर पड़े परदे से बेहतर है। जायज़ा लेने के लिए जब यहाँ पहुंचे तो इस इमारत को देखना किसी डरावने ख्वाब की तरह था। ब्रिटिश पीरियड की बनी इस इमारत को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था कि इसके कबाड़खाने में बदलने का सिलसिला कई बरसों की अनदेखी का नतीजा है। साइंस, स्पोर्ट्स और कल्चरल एक्टिविटीज़ के लिए जिस कॉलेज का एक सदी का इतिहास था वहां मौजूद दबी सहमी और घबराई लड़कियों की हालत पर कोविड महामारी का पर्दा डालना किसी तरह से समझ नहीं आ रहा था। 100 साल पुरानी लाइब्रेरी गायब हो चुकी थी, स्पोर्ट्स और म्युज़िक के कमरे में भी लोहे की बेंच और मेज़ जड़ी हुई थीं। आंखें नम कर देने वाला मंज़र यहां की लेबोरेट्री पेश कर रही थीं। जिन चमचमाती लेबोरेट्री ने हमें डार्विन, लेमार्क, न्यूटन, आइंस्टीन जैसे ढेरों नामों के करीब पहुँचाया था, आज उसके पास जाने की भी इजाज़त नहीं थी। क्यूंकि ईमारत के इस हिस्से के किसी भी लम्हे गिरने की उम्मीद यहाँ का हर स्टाफ लगाए बैठा था।
प्रिंसिपल की बेहिसी इस लिए और ज़्यादा बुरी लगी क्योंकि वह खुद भी यहीं की पढ़ी थी और उनकी मां भी यहां से रिटायर हुई थीं। फिलहाल उन्हें भी बस किसी तरह अपने रिटायरमेंट का इन्तिज़ार है। उनके अलावा यहां कोई भी परमानेंट टीचर नहीं।
मेरा ही क्या इस इलाके में रहने वाले कई नस्लों के बाशिंदे इस कॉलेज के शानदार इतिहास से वाक़िफ़ है और आज भी किसी को छेड़ भर दीजिये तो यहां के फख्र दिलाने वाले यादगार किस्सों की भरमार है उनके पास। और हम शायद किस्सा अल्फ़ लैल (जिसे आम भाषा में किस्सा अलिफ़ लैला) तैयार कर सकते हैं यहाँ के बारे में।
बहरहाल उसी लम्हा इस पर डॉक्युमेंट्री बनाने का फैसला किया, जिसे पूरा करने में साल लग गया। इसे बनाने की दास्तान भी कम दिलचस्प नहीं रही। जिसका ज़िक्र फिर कभी।
इसे बनाने में कई लोगों ने रोड़े डाले तो कई ऐसे भी थे जिन्होंने हर मुमकिन कोशिश से उस रास्ते को आसान किया। मेरी रिसर्च, स्क्रिप्ट और वॉइसओवर पर शूटिंग और एडिटिंग की ज़िम्मेदारी Mrityunjay Singh और Priyanshu AP Singh ने निभाई। कई जगह से रिजेक्ट होने के बाद जब हम पूरी तरह से मायूस हो चुके थे तो Naish Hasan के साथ Amar Ujala जाना हुआ और शुक्रिया आपका Roli Khanna जो इसे अपने प्लेटफार्म पर जगह दी।
https://www.youtube.com/watch?v=ceireIm-Po0&t=1263s
It used to be such a high level institution of education and now has become a defunct school due to negligence of concerned authoritiez
जवाब देंहटाएंसमीना आपने एक महत्वपूर्ण काम किया है,जिसे दर्ज किया जाना बेहद जरूरी था..सलाम आपको❤️
जवाब देंहटाएंSameena salam h tmko jo tmne is dardnaak sachai se ru ba ru karwaya ......khush raho tm or salamat rahe apna school
जवाब देंहटाएंSameena aap na school our education and prda par bahut bahut khoob likha hai allah aap ko bahut khush rakhe ameen
जवाब देंहटाएंBahot afsos hua is school ki haal dekh kr aur sunkr
जवाब देंहटाएंShama kidwai
समीना बहुत मेहनत और खूबसूरत तरीके से आपने यह डॉक्यूमेंट्री बनाई है जिसके लिए आप तारीफ़ के काबिल हैं। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दोस्त।
जवाब देंहटाएं- अवंतिका सिंह
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं