सोमवार, 26 दिसंबर 2022

कोरोना

कोरोना एक रीढ़विहीन जीव है। बहुत ही छोटा और कमवज़न मगर बहुत उत्पाती। इस उत्पात और मीडिया कवरेज की बदौलत उसने खूब ख्याति भी पा ली है। आज पूरी दुनिया में उसका डंका बजता है। उसकी दहशत के बूते धिक्कारा भी गया, उसके मंदिर भी बने और पूजा भी हुई। कोरोना बेहद चालाक है। उसने उत्पात मचाकर लेबोरेट्री में जगह पाई और खुद को महान वैज्ञानिक समझने लगा।  

कोरोना ने खूब खूब फोटोग्राफी करवा ली। खूब खूब शोहरत बटोरी मगर आजतक किसी को अपना इंटरव्यू नहीं दिया।  अपनी हमजमात बीमारियों पर हावी होता हुआ कोरोना बाक़ी बीमारियों को खा गया। ऐसा खाया कि हैज़ा से लेकर कैंसर तक उसके आगे बौने हो गए। आखिरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मान लिया कि अब हमें कोरोना के साथ जीना सीख लेना चाहिए। जनता राज़ी भी हो गई। इस बीच कुछ विपक्षी बीमारियों ने सिर उठाया। कोरोना को कहाँ ये बर्दाश्त था। 

कोरोना और मुक़ाबिल बीमारियों के बीच जंग शुरू हो गई है। कोरोना लॉकडाउन का ट्रम्पकार्ड पहली चाल में फिकवा चुका था। त्रस्त जनता इस बार शायद इस पैंतरे की मुखालिफत कर जाए। चाइनीज़ जनता ने लॉकडाउन पर अमल करने से इंकार भी कर दिया है। भारत में तैनात कोरोना भी थोड़ा परेशान है। उसने तांडव तो जमकर मचाया, लाखों करोड़ों को दरबदर और बेरोज़गार किया मगर ऑक्सीजन की बहाली ऐसी थी कि उसकी कमी के बावजूद एक भी जान न ले सका। 

दुनिया में कोरोना का डंका बजता है। मगर जहाँ पर चाहे वह चुप्पी साध लेता है। उसने एवीएशन विभाग को इसकी कानोकान खबर नहीं लगने दी है। चाइना सहित दुनियाभर की हवाई यात्रा बहाल है। मगर उसका डंका बजना शुरू हो गया है। इस डंके का वॉल्यूम बढ़ता जा रहा है। संसद में मास्क नज़र आने लगे हैं। कुछ सेंटा क्लॉज़ बिना मास्क सड़कों पर निकल हैं।       

कोरोना पूरी अर्थव्यवस्था डकार चुका है। मगर उसे ये नहीं भूलना चाहिए कि हैज़ा, चेचक और फ्लू से लेकर पोलियो तक कितनी ही महामारियां मगर कोई भी अमर न हो सकी। कोरोना का इलाज भी ओपीडी की लाइन में एक रूपये का परचा बनवाने वाली आम जनता ही करेगी। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

'सफ़र में इतिहास' संग जो महसूस किया

'सफर में इतिहास' हाथ में आई तो ख्यालात का एक न थमने वाला सफ़र साथ हो लिया। मेरे लिए इस किताब का अनुभव बड़ा ही दिलचस्प रहा। किताब के पल...