शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

शबेबारात मुबारक! कोई ऑफलाइन हलवा भी खिला दे

इनबॉक्स और वॉल  से खबर मिली कि आज शबेबारात है। इस बार मुबारकबाद के कार्ड से ज़्यादा हलवा भेजा जा रहा है। स्क्रीन के पीछे नज़र आती हलवे की प्लेटें बड़ी ज़ालिम नज़र आईं। सजावट से भरपूर दिख रही थीं महसूस भी हो रही थीं मगर छूने के कोशिश में यही कह देतीं - 'तूने हाथ बढ़ाया और मैं चली' तो शायद दिल को क़रार भी आ जाता। मगर ये ज़ालिम पूरी आन बान और शान के साथ तरसाती हुई मौजूद थीं। हम लोग हलवे वाले मुसलमान नहीं। हमारे घर साल में किसी भी दिन हलवा बना मगर शबेबारात में कभी नहीं। क्यों नहीं?  इस पर कभी इसलिए नहीं सोचा कि पड़ोसियों के हलवे ने इस महरूमी का एहसास ही नहीं होने दिया।

वो तो आज ऑनलाइन हलवे ने कई एहसास जगा दिए। ये मुआ ऑनलाइन हलवा एक और मामले में बड़ा वाहियात निकला। ऑफ़लाइन हलवे का वाक़ई कोई जवाब नहीं। जब आपके घर हलवा न बना हो तो पड़ोस से आये हलवे को शेप बदलते हुए सिर्फ अपने घर की तश्तरी में रखना होता है और इधर का माल उधर। मतलब पड़ोसियों का माल पड़ोसियों के घर अपने हुनर की ब्रांडिंग के साथ भेजा और ताल्लुक़ात बहाल कर डाले। अब ज़रा सोचिये कि ऑनलाइन हलवे के साथ ये हरकत करें तो ऑल्टन्यूज़ या न्यूज़लॉन्ड्री वाले ही सबसे पहले पोस्टमॉर्टम कर दें। यहाँ तो फोटोशॉप पर भी महारत नहीं हासिल है।

इस हलवे का ज़ाइक़ा लेने के जतन  में एक और नाकामयाब कोशिश कर डाली। सोचा कि आँखों से ऐसी मशक्कत कर डाले और उन मर्दों जैसे बन जाएं जो सड़क पार खड़ी लड़की को घूरकर गटक लेने की सलाहियत रखते हैं। थोड़ी ही देर में अंदाज़ा हो गया कि हलवा तो नहीं नसीब होगा अलबत्ता चश्मे का नंबर ज़रूर बढ़ जायेगा। यक़ीन मानिये अंदर से भले ही मिस्टर बीन वाली नाकामयाबी और खिसियाहट महसूस हो रही हो मगर चेहरे से कोई इस टूटे दिल का अंदाजा नहीं लगा सकता।

खैर उन सभी हलवा बनाने वालों को हलवा और शबेबारात मुकारक हो जिन्हे हलवे से ज़्यादा ज़ाइक़ा इस बात में मिल रहा है कि लॉकडाउन के चलते ये सारा का सारा उनका है। आज इन सबको पुलिस बहुत अच्छी लग रही होगी जिसके चलते इसमें हिस्सा बाँट नहीं होगा। मगर याद रखिएगा, फिर वक़्त का पहिया घूमेगा, फिर शबेबारात आएगी और फिर आप ऐसे ही सजे बने हलवे बनाएंगे और हम ऑफ़लाइन आपके दरवाज़े पर दस्तक देते मिलेंगे। तब आपके पास पूरा मौक़ा होगा अपनी मेहमाननवाज़ी दिखाने का।

(मेहरबानी करके इस पोस्ट को मज़हब, जेंडर, कंजूसी, काहिली या चालाकी से न जोड़ें।)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

'सफ़र में इतिहास' संग जो महसूस किया

'सफर में इतिहास' हाथ में आई तो ख्यालात का एक न थमने वाला सफ़र साथ हो लिया। मेरे लिए इस किताब का अनुभव बड़ा ही दिलचस्प रहा। किताब के पल...