एक चीज़ होती है 'लॉजिक' और इसकी मदद से बड़ी ही आसानी से स्याह को सफेद साबित कर दिया जाता है। एक चीज़ होती है 'विज्ञान' जहां बात परिकल्पना से शुरू होती है और सिद्ध किये जाने तक जूझती रहती है। एक चीज़ होती है 'कला' जो कि ख्यालों में परवान चढ़ती है। मगर हर कला चाहे वह पैर की एक धमक से बेशुमार घुंघरुओं में से सिर्फ एक घुंघरू को बजाने की खूबी हो या छोटे से कैनवास पर रंगों की बदौलत आसमान का नज़ारा करा देना, ये सिर्फ साधना का कमाल होता। इन सबसे इतर एक बीमारी होती है 'मुँह की बवासीर', जो बज़ाहिर हर कला और साधना पर हावी होती है और इसे ही इस दौर में सबसे ज्यादा सहूलियतें मिली हैं।
रविवार, 13 फ़रवरी 2022
एक चीज़ होती है....
परंपरा के नाम पर ढकना और आधुनिकता के नाम पर कपड़ों को उतरना अगर सही है तो लॉजिक कहती है कि चीरहरण को फेनिज़्म की अदालत में कुछ रियायत मिलनी चाहिए। इस दलील के साथ कि कौरवों की नियत भले ही बुरी रही हो मगर कई मीटर की साड़ी पर उन्होंने हमला किया।
विज्ञान की बात करें तो चार्ल्स डार्विन का कहना है कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है। डार्विन का 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' यानी योग्यतम की उत्तरजीविता का सिद्धांत या जिसे नेचुरल सेलेक्शन कहते हैं। ये थेरी संघर्ष संरक्षण की बात करती है। विज्ञान के दायरे में ही चलते हुए अगर न्यूटन के एक्शन रिएक्शन तक आएं तो न्यूटन का तीसरा नियम कहता है कि हर क्रिया के बराबर और दिशा में विपरीत प्रतिक्रिया होनी ही है। विज्ञान का ये पहलू भी बता रहा है कि नतीजे में प्रतिरोध ही मिलेगा। जब पड़ताल साइंटिफिक पहलू पर ही हो रही है तो अनुक्रमानुपात (directly proportional) और व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) नियमों का भी जायज़ा लेते चलें। अभी तक कोई भी ऐसी दलील सामने नहीं आई है जहां ड्रेस का आईक्यू के साथ सीधा या एक बटा वाला रिश्ता सामने आया हो।
कुछ ऐसे लोग भी अपने दिल की कहने के लिए सामने आ गए हैं जिनकी नसों में पान मसाले का जूस और दिमाग़ में बीड़ी सिगरेट का धुआं भरा हुआ है। उनसे बस इतना ही कहना चाहेंगे कि किसी बहलावे में न आएं। दिल का रिमोट दिमाग़ के पास है।
सदा से अंधे कानून की क्या कहें। मुंसिफ का इंसाफ कभी इतना मशहूर न हो सका जितना ये कि 'मुंसिफ ही मेरा क़ातिल है' हुआ। हर मामले की मानिंद हिजाब का मुद्दा भी ठन्डे बस्ते की नज़र हो जायेगा, मगर दिल में ये ठेस हमेशा के लिए लग गई कि कानून और अदालत से पहले अब गुंडे और मवाली फरमान सुनाएंगे। या कह सकते हैं कि शैक्षिक संस्थानों के नियम राष्ट्रवाद के चरम वाले ज़माने में संविधान से ऊपर उठते दिख रहे है।
और मीडिया! उसकी तो बात ही न कीजिए। पुनर्जन्म और सात फन वाले नागदेवता का अवतार दिखाने के बाद उसने साइंटिफिक टेम्परामेंट अपनाया। मीडिया दो हज़ार के नोट में चिप या हाथ में मोज़े पहने एंकर का एस्ट्रोनॉट बनना दिखा सकता है मगर आम इंसान को उसके फॉर्मेट से बेदखल हुए ज़माना हो गया है।
इन सबसे ऊपर एक चीज होती है बाजार, जिसके पास इन सबको रौंद देने का हर हथकंडा होता है। इस बाजार के पास खुद को पेश करने का एक जादूभरा अंदाज़ होता है। ये जादू ऐसा दिमाग सुन्न करता है कि सोचने समझने की सलाहियत जाती रहती है। हो सके तो हिजाब के बाजार और उसके आंकड़े खुद ही तलाश लें।
इन सबसे हटकर एक बिलकुल फोकट की चीज़ होती है मुंह की बवासीर। ये छूत की बीमारी है कि नहीं, नहीं मालूम अलबत्ता डीएनए में कुछ इस तरह से पाई जाती है जिसकी रिपोर्ट कोई अल्ट्रासाउंड या एमआरआई कभी नहीं दे सकता। मगर कोरोना के डेल्टा वेरिएंट से ज़्यादा खतरनाक है और हर कोई इसकी चपेट में है। भले ही हमला माइल्ड हो। क्यूंकि इसका असर मानसिक है और मानसिक बीमारी हमारे वहां सिर्फ वही समझी जाती है जिसमे हाथ पैर बांधने की नौबत आ जाये। ऐसे में इसका वैक्सीन तो दूर बीमारी का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इसकी चपेट में आने वाला हर वर्ग और जाति अभी तक जो कह पाता था उसे सुनने वाले एक्का दुक्का या मुट्ठी भर होते थे। मगर सोशल मीडिया पर जबसे खटाखट करती उंगलियों को चांस मिला है तो ख़यालात का सैलाब समंदर बन गया है। इस समंदर में हर दिन तमाम ऐसे मुद्दे बह जाते हैं जो नहीं बहने चाहिए।
हिजाब, मुसलमान, सियासत और शिक्षा को दरकिनार करते हुए एक बार उन आवाज़ों को भी तलाशा और सुना जाना चाहिए जिनके नाम पर इस बिसात को बिछाया गया है।
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Nice article
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएं👌👌👍🌹
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंThank You.
हटाएं👌👌👍बहुत बढ़िया आलेख।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंGazab! Impressed!
जवाब देंहटाएं🙏
हटाएंGazab h yr
जवाब देंहटाएंबहुत सलीके से बात रखी, लय पूरी बरकरार रखी मुद्दो की परत दर परत खुलती चली गयी। बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुलझे और मुख़्तसर से इल्फाज़ से सटीक बात की है आपने | एक खास समुदाय से नफरत करते करते उनके निजी ख्यालातों को भी टारगेट करना शरू हो गया |
जवाब देंहटाएंGood one..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत आर्टिकल, कम से कम उस औरत से भी तो पूछ लिया जाय जिस के पहनने ओढ़ने को लेकर वबाल खड़ा किया जा रहा है। तारीख, विज्ञान, पौराणिकता को जोड़ते हुए आप ने बहुत ही सलीके से अपनी बात कही है।
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