साहित्य अकादमी का नय्यर मसूद पर पब्लिश मोनोग्राफ ‘हिन्दुस्तानी अदब के मेमार- नय्यर मसूद’ पढ़ना अच्छा लगा। 'शहर-ए-अदब' और 'शहर-ए-सुख़न' जैसे हवालों पर ज़माने की जो गर्द आ गई है, उसे इस तहरीर ने जैसे साफ कर दिया। हर पलटते पन्ने के साथ नय्यर मसूद की शख्सियत नुमाया होती गई और इस बात का एहसास भी बढ़ता गया कि इस मोनोग्राफ की बदौलत अदब और सुखन से इस शहर के रिश्ते में एक मज़बूत गिरह लगाने वाले का शुक्रिया अदा करना चाहिए।
इस मोनोग्राफ को लिखने के लिए अगर महज़ एक फ़ोन की मदद लेकर शोएब साहब का शुक्रिया अदा किया जाए तो यह ज़्यादती होगी। और तब इरादा किया कि जिस शख्स ने यह काम किया है, उससे फोन पर इतनी बात-चीत तो कर ही लें कि कुछ लिखा जा सके।
शोएब साहब यानी शोएब निज़ाम रिटायर प्रिंसिपल रहे हैं। मेरे बुज़ुर्ग दोस्त हैं और अदब के उन जानकारों में से हैं जिनके पास मुल्क नहीं दुनियाभर के अदब और अदीबों से जुड़ी ढेरो-ढेर जानकारियां है। उनकी मालूमात का हवाला हम क्या देंगे जिनका चुनाव खुद साहित्य अकादमी ने किया हो। लेकिन शोएब निज़ाम से पहले नय्यर मसूद को समझना ज़्यादा ज़रूरी है।
साहित्य अकादमी ने अगर नय्यर मसूद साहब के नाम का इंतिखाब किया तो यक़ीनन उनकी खूबियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। बीसवीं सदी की तीसरी दहाई में पैदा हुए नय्यर मसूद का घराना ईरान से ताल्लुक रखता है। इनका खानदानी पेशा हकीमी था मगर वालिद इन्हें एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में भेजना चाहते थे और उस वक्त की मुनासिबत से तय हुआ कि इन्हें फारसी पढ़ाई जाए। मगर नय्यर मसूद लखनऊ यूनिवर्सिटी में फ़ारसी के प्रोफेसर बने।
लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के दौरान नय्यर मसूद की दोस्ती शम्सुर्रहमान फारूकी से हुई। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से 1964 में उन्होंने रजब अली बेग सुरूर और उनके कलमी आसार' पर अपनी पीएचडी मुकम्मल की। कुछ दिन शहर बरेली में बतौर उस्ताद पढ़ाने के बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी में फारसी के लेक्चरर हो गए। अफ़सानानिगारी के अलावा तनक़ीद (आलोचना), अनुवाद जिनमें काफ्का की कहानियां, बोर्खेस की नज्मों अलावा भी बहुत कुछ लिखने वाले नय्यर मसूद ने बच्चों के लिए भी लिखा है।
नय्यर मसूद न सिर्फ एशिया बल्कि पूरी दुनिया के कुछ खास फ़ारसी दानिश्वरों में से हैं। वह ज़माने के जदीद (आधुनिक) उर्दू के अफसानानिगार होने के साथ आला दर्जे के मुतर्जिम (अनुवादक) भी हैं। नय्यर मसूद की कहानियों में वजूदियत (अस्तित्ववाद) के अलावा जादुई हक़ीक़त पसंदी और तहज़ीब का असर साफ झलकता है। नय्यर मसूद काफ्का, कैमियो, पिंचन, एडगर एलन पो, ब्रैंट और दोस्तोवस्की से मुतास्सिर थे।
अदब की खिदमत के लिए नय्यर मसूद को जिन अवॉर्ड से नवाजा गया है उनमें साहित्य अकादमी और सरस्वती सम्मान (ताऊस चमन की मैना, 2007), कथा अवॉर्ड (1992_93), उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी अवॉर्ड, राष्ट्रपति सम्मान ओर ग़ालिब अवॉर्ड के अलावा भी तमाम नाम शामिल हैं।
हालांकि शोएब साहब बड़ी ही बेतकल्लुफी से इस बात का ज़िक्र करते हैं कि जब पिछले बरस साहित्य अकादमी ने ये तय किया कि नय्यर मसूद पर मोनोग्राफ लिखा जाएगा, तो उस वक़्त पद्म श्री से नवाज़े गए शीन क़ाफ़ निज़ाम को भी यही लगा कि इस काम के लिए सबसे मुनासिब नाम शोएब निज़ाम का ही हो सकता है।
अक्टूबर या नवम्बर 2024 में साहित्य अकादमी के उर्दू विभाग से शीन क़ाफ़ निज़ाम उर्फ़ शिव किशन बिस्सा ने शोएब निज़ाम से कहा कि वह नय्यर मसूद साहब पर उर्दू में एक मोनोग्राफ लिखें जो साहित्य अकादमी के लिए होगा। शीन क़ाफ़ निज़ाम ने उन्हें इस लिए चुना था क्योंकि शोएब निज़ाम, नय्यर मसूद के ख़ास शागिर्द होने के साथ-साथ उन पर कई आर्टिकल लिख चुके थे।
इस फरमाइश के जवाब में शोएब निज़ाम ने अनीस अशफ़ाक़ के नाम की पैरवी यह सोचकर की
कि वह इसे ज़्यादा बेहतर कर सकेंगे। शीन क़ाफ़ निज़ाम ने जब अनीस अशफ़ाक़ से राब्ता किया
तो इत्तिफ़ाक़ से उन दिनों उनकी सेहत ठीक नहीं थी और वह किसी और काम में ऐसे उलझे हुए
थे कि कि इस मोनोग्राफ के लिए शोएब निज़ाम को खुद से ज़्यादा बेहतर तरीके से अंजाम देने
वाला बताया। इस तरह शोएब निज़ाम का नाम इस काम के लिए तय हो गया।
शोएब निजाम की अलीगढ़ से मोहब्बत ने इस मोनोग्राफ के मुकम्मल होने में बड़ा ही बेहतरीन रोल अदा किया है। शोएब साहब को अलीगढ़ से कुछ ख़ास दिलचस्पी थी और किसी भी कॉन्फ्रेंस या सेमीनार के बहाने वहां पहुंचने की कोशिश भी किया करते थे। एक ऐसी ही कामयाब कोशिश के मौके पर ज़फर अहमद सिद्दीक़ी ने शोएब साहब से कहा कि आपसे एक काम है। जब जवाब मिला- 'हुक्म कीजिए' तो इस पर ज़फर साहब ने उन्हें एक शागिर्द महजबीं खान से ये कहकर मिलाया कि इसकी पीएचडी नय्यर मसूद साहब पर है और आप इसकी मदद कर दीजिए।
''आज हुए मजबूर हम ऐसे, हार के हमने माना है
तुमने हमको हमसे बेहतर जाना है पहचाना है।''
क़रीब सौ पन्नो वाले इस मोनोग्राफ, 'हिन्दुस्तानी अदब के मेमार- नय्यर मसूद' के ज़रिये उनकी ज़िंदगी से मौत तक की तमाम छोटी बड़ी जानकारियों को इसमें शामिल किया गया है। उनकी ज़िंदगी के खाके के साथ अफसा नानिगारी, तहक़ीक़, तनक़ीद (आलोचना), बच्चों का अदब और तर्जुमे के अलावा मुख्तलिफ गैरअफसानवी कारनामे भी शामिल हैं।