बुधवार, 31 मार्च 2021

शहरे जानां

अपने शहर को देखने के लिए जब भी निगाह उठाई दिल की नज़र बाज़ी मार गयी। हम जब इन गली - कूचों में टहले, इसका हुस्न गर्दिश करता हुआ रग रग में दौड़ गया। अजब सा रिश्ता है इन गली - कूचों, इमारतों उन पर मंडराते बादलों यहां तक के उस मिट्टी से भी जिसकी आगोश ने पनाह दी।  

हर दिन फलता फूलता लखनऊ का नक़्शा इस बात का गवाह है कि जो भी यहां आया आबाद हो गया। यही तो है इस शहर की मोहब्बत की गिरफ्त। इन मोहब्बतों का ऐहवाल कोई उन दिलों से पूछे जिन्हे रोज़गार ने शहर बदर कर दिया है। जिस्म भले ही यहां से दूर हुए हों मगर ज़िक्र ने इसे दुनिया जहान की महफ़िलों में आबाद रखा है। 

हर दिन रफ़्तार की नई तेज़ी हासिल करती दुनिया में इन ठहरी इमारतों का दीदार वह सुकून दे जाता है कि बीमार दिल की बेक़रारी थम जाए, रूह को चैन मयस्सर आ जाए। यक़ीन न हो तो कभी ख़ामोशी से इन इमारतों को निहारिये, ये अपनी धड़कन का एहसास आप को खुद कर देंगीं। 

इस शहर ने यहां के हर बाशिंदे को हमेशा फख्र से सर उठाने का मौक़ा दिया है। इसकी तारीख़ में नवाबों के शाही क़िस्से भी हैं तो जंगे आज़ादी के रिस्ते ज़ख्म भी। तिजारत ने यहां बुलंदियां छुई हैं तो ताजिर हुनरमंदों को सर आंखों पर बैठाया है। यहां के ज़ायकों की खुशबू ने सारी दुनिया में लज़्ज़त का बोल बाला किया है तो क़लम ने सरहदों पार दाद बटोरी है। इस लबो लहजे ने यहां के बाशिंदों को सामने वाले के दिल में पनाह दी है। ये सब वही सरमाया है जो परदेस में बसे लखनऊ वाले के उस लम्हे को फख्र से नवाज़ देता है, जिस लम्हा वो अपना पता ये कहकर देता है - 'जी ! मेरा ताल्लुक़ लखनऊ से है।'  

एक नर्म  नाज़ुक से धड़कते दिल का मालिक ये शहर बड़ा ही सख्त जान है। दुनिया के उस हिस्से में इसका क़याम है जहां हर मौसम अपनी पूरी शिद्दत लेकर आता है। झुलसाती गर्मियां, रूह को ठिठुरा देने वाली सर्दियां और मूसलाधार बरसते कितने ही सावन आये और गुज़र गये। कितनी ही कड़कड़ाती बिजलियां और आंधी तूफ़ान यहां से रवाना हो गये। इन सबके दरमियान खिज़ा और बहारों का सिलसिला भी जारी रहा। 

हर सुबह निकलने वाले सूरज ने, हर रात घटते - बढ़ते चांद ने और हर बदलते मौसम ने इसके हुस्न को बदस्तूर पाया। इसलिए, इस शहर को आफरीन। 

(तस्वीर : सीमा सिंह) 

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